25 मार्च 2010

सरसों फिर फूटे

फट गयी खेतों की मिट्टी ,
सूरज की गरमी सह सह कर |
अमवा सी बौराई देह
पोर - पोर टूटे ,
सरसों फिर फूटे ||
लेटा है कलुआ आँगन ,
ढांप अंगोछा , बिछा चटाई ,
काली बिल्ली पुरवा से ,
चट  कर गई दूध मलाई |
जाती बछिया को तक ,
गैय्या  डोल रही खूंटे |
सरसों फिर फूटे | |
ख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
नहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |
अम्मा - दादी , लहंगा - चुनरी ,
टांक रही बूंटे |
सरसों फिर फूटे | |

9 टिप्‍पणियां:

  1. ख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
    नहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
    गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
    नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |
    अम्मा - दादी , लहंगा - चुनरी ,
    टांक रही बूंटे |
    सरसों फिर फूटे | |

    ati sundar bhav abhivakti

    जवाब देंहटाएं
  2. khubsurat bhavna pradhan tukbandi........achha laga........

    जवाब देंहटाएं
  3. ख़त्म हुई कुंए और पनघट की बातें ,
    नहीं सुहाता तनिक कमरों का बंधन ,
    गौना होकर आ रही पायल की रुनझुन ,
    नीक बहुत होती हैं छत पर ठंडी रातें |

    sundar bhavon kee khoobasurat abhivyakti.shubhakamnayen.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही झनकृत करदेने वाली कविता...."

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. great artistic, great selection of eords

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  7. खूब-सूरत परिदृश्य -परिकल्पना !

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आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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