11 अप्रैल 2010

मैं तुम्हे मार ही डालूँगा

तुम आये हो मेरे पास ,
बदहवास ,
तुम्हारे हाथों में हैं ,
चमकता ,
लपलपाता ,
एक लम्बा छूरा.
तुम आये हो मुझे मारने,
तुम मुझे मार ही डालोगे .
तुम्हारा है लंबा कद ,
बड़ा डील-डौल ,
भारी काठी ,
कद्दावर शरीर.
तुम्हारी लाल आँखों से ,
सच पूछो ,
तो मैं बहुत डर गया हूँ .
मैंने क्यों खोला दरवाजा ?
मैं क्यों नहीं मचाता शोर ?
तुम क्यों देख रहे हो इस तरह ,
                 मेरी ओर ?
क्यों मेरी हथेली है -
पसीने से पसीजी ?
और गला शुष्क ?
ये मुझे क्या हो गया है ?
अटक गए हैं शब्द गले में .
पेट से कान तक फ़ैल गयी मतली .
मैं जो देता था बड़ी बड़ी तकरीरें .
मुझे यकीं था किसी भी विषय पर 
मैं लिख लूँगा तकदीरें ,
समझा लूँगा .
मैं अफसानागो हूँ 
बचा लूँगा किरदार .
भले ही कहानी कुछ उखड़ी है , हड़बड़ है.
भाषा विन्यास पर ,मेरी बड़ी पकड़  है .
पर तुम्हारे हाथ में छूरा  है 
और फिसलते जा रहे हैं 
अन्दर मेरी जुबां से शब्द .
मौत का सन्नाटा मेरे ऊपर नाच रहा है ,
नब्ज बैठ रही है ,
और छा रहा है आँखों के आगे अँधेरा .
तुम आये हो मुझे मारने,
तुम मुझे मार ही डालोगे .
मैं कोस रहा हूँ उस घड़ी को 
जिसमे तुमसे हुआ था परिचय 
या फिर भय ?
याददाश्त ! मेरी याददाश्त को ये क्या हुआ ?
ये मुझे क्या हो रहा है ?
मैंने लपक कर उठा लिया छूरा.
तुम्हारे हाथ से फिसला छूरा .
तुम आये हो मुझे मारने 
मैं मार डालूँगा 
मैं तुम्हे  मार ही डालूँगा 
इससे पहले की तुम मुझे मार डालो .
कहीं तुम स्वयं से भयभीत नहीं थे ?
हाँ अब याद आया 
तुम आये थे दबे पाँव 
चुपचाप .
और नहीं बजायी बेल .
सिर्फ की दरवाजे पर हलकी सी खटखट .
या वह मेरे कान में थी ?
क्या तुम भाग रहे थे ?
और आये थे मेरे पास बचने ?
यह मैंने क्या किया ?
मैंने तुम्हे  मार डाला .
नहीं. 
तुम आये थे मुझे मारने
मैंने  तुम्हे मार डाला 
इससे पहले की तुम मुझे मार देते 

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