29 जून 2010

जीवन की महाभारत

हम सब शामिल हैं ,
हर क्षण 
पल , प्रतिपल 
जीवन की महाभारत में 
अपने ही रचाये
चक्रव्यूह को सजाने 
और उसमे फंसे 
अपने प्रतिबिम्ब 
अभिमन्यु को बचाने.
हमारे ही बीच है कोई 
जो धृतराष्ट्र की तरह अँधा है ,
कोई शकुनी सा धूर्त है ,
कोई कर्ण सा दानवीर है 
कोई भीम की तरह शक्तिशाली , पर अधीर है .
बाहर  नहीं 
हमारे भीतर 
एक धर्मराज बैठा है 
जो नापतौल के बोलता है 
एक भीष्म है 
जो अपने ही वचन तौलता है
एक अर्जुन है 
जिसकी अपने ही स्वार्थों की मछली पर टंगी आँख है 
एक द्रौपदी है 
जो पांच पतियों के होते हुए भी राजनीति की साख है ,
जो हमारे चरित्र से भी ज्यादा निर्वस्त्र है
एक गांधारी है जिसने बांध रक्खी  है आँखों पर पट्टी  
हम सब अभिनेता हैं 
रोज स्वांग भरतें हैं  
अभिनय करतें हैं 
पढ़तें हैं रामायण 
और पात्र में महाभारत सजतें हैं .
सोचतें हैं अपने ही बांधवों के खिलाफ 
दुर्योधन की तरह कुटिल चालें
अपने मन विष , वैमनस्य पाले 
और सोचते हैं 
हम हैं सारथी अर्जुन के 
देतें हैं औरों को गीतोपदेश 
'यदा यदा ही धर्मस्य ...
संभवामि युगे युगे '.
और हर युग में 
हम सब शामिल हैं
व्यस्त हैं 
जो देखतें हैं 
जीवन को राजनीति  के सोपान का प्रतिबिम्ब 
और स्वयं को उसके शिखर पे बैठा हुआ ईष्ट.

3 टिप्‍पणियां:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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