9 नवंबर 2010

अपने नाम में

एक शीशा  बचा  है  इस  घर  की  दीवार में ,
और  एक  पत्थर  धरा  है  तुम्हारे  हाथ में |
जैसे घी जला करता है होमो-हवन के साथ में ,
वो बराबर साथ जला  है  मेरी  इस आग में |
कल आँखों से उसने इतना कुछ कह डाला ,
उतना लिखने बैठूं तो दिन ढल जायेगा रात में |
सारी किताबें पढ़ कर भी मैं अधूरा ही रहा ,
तुमको अब भी पढ़ रहा हूँ मैं हर किताब में |
बरसों पहले मिटाया था तुमने दिल से नाम मेरा
जख्म यूँ तो भर गया है दर्द अभी है घाव में |
जिंदगी , जाँ, जिस्म तीनो ले लीजिये, शर्त है ,
मेरा नाम लिखा करोगे तुम अपने नाम में  |

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