2 मई 2011

सच कहाँ खड़ा है

सच कितना बड़ा है
सच कहाँ खड़ा है || 

वो मेरा पड़ोसी है ?
दुनिया क्या इतनी छोटी है ?
किसके मुंह की बोटी है
वो क्या सिर्फ रोजी – रोटी है ?
दादी माँ माला के मनकों में पिरोती है
माँ इसे आसुओं में बहाती है
दुनिया गंगा में नहाती है
वो क्या इतना पक्षपाती है ?
वो क्या हमारे जजबातों में है
वो क्या बही-खातों में है
वो क्या मोमबत्ती की रोशनी में है
जो इंडिया गेट पर हाथों में है
वो काले लबादो में छुपा है
वो क्या बारीकियों-बातों में है
वो क्या इबारतो आयतों में है
वो क्या हमारी रवायतो में है
वो मुझसे कहाँ बिछड़ा था
क्या अब भी किसी मोड़ पर खड़ा था ||
वो क्या किसी मॉल में बिकाऊ है
वो क्या भाषणों में उबाऊ है
वो हमारे अखबारों में छपा है
वो किस लिफाफे का पता है
वो किसके चेहरे का हिजाब है
वो कैसा मुखौटा है
वो किसका नकाब है
वो क्या चेहरे पर फेंका तेजाब है
मेरी निगाहों नें जिसे ढूंढा है
वो जवान है या बूढ़ा है
सच कितना बड़ा है
सच कहाँ  खड़ा है ||
बुद्ध के निर्वाण का पड़ाव
गांव के चौबारे का अलाव
वो क्या अदालतों के अहातो में बिक गया
वो सभाओ , नारों, भाषणों में छिप गया
वो सड़ा गेहूँ  चावल था
या गरीब का निवाला था
वो किसकी गाढ़ी कमाई थी
किसकी नौकरी के लिए हवाला था
कला क्या सृजनात्मक अभिव्यक्ति है
या सिर्फ हमारी संवेदनाएं रीतीं हैं
भेडियो के लिए भेड़ की एक खाल है
या दोहरी चरित्रता की नयी कोई चाल है
अमरनाथ की यात्रा की कठिनाई
या एवरेस्ट की ऊँची चढाई
चेतना की सामूहिक अभिव्यक्ति
या अवनति की अंधेरी खाई
जब सारा जगत बिकाऊ है
वो क्यों इतना अकड़ा-अकड़ा है
सच कितना बड़ा है
सच कहाँ खड़ा है ||
किसी के समर्थन में लिखा अपरोक्ष संपादकीय / विश्लेषण
या किसी विषय का निरपेक्ष अंकेक्षण
सत्ता के गलियारे में सत्य की खोज
या सुविधाभोगी की तैयार उपजाऊ संपर्कों की फौज
सत्य की खोज में जुटी निर्भीक पत्रकारिता
या अपने राजनैतिक विश्वासों की छदम-चरित्रता
किसी औद्योगिकी घराने की सुविधाओं का प्रतिदेय
या किसी भौगोलिक सत्ता की प्रतिश्रुति का उपादेय
अगर हमाम में सब नंगे हैं
तो क्यों कपड़ों का झगड़ा है ||
सच कितना बड़ा है
सच कहाँ खड़ा है ??

1 टिप्पणी:

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

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