11 मई 2011

एक स्वीकारोक्ति

बहुत वर्ष लेखन और रचना प्रक्रिया से अलग रहने के बाद जो भी दिमाग में आता है लिख जाता हूँ . पाठक इस अनर्गल प्रलाप को बर्दाश्त कर रहें हैं . सुखद अनुभूति है .
पर  प्रक्रिया  है मस्तिष्क को फिर सान पे चढाने जैसी .और उससे भी ज्यादा चीजों को अलग से देखने की प्रवृत्ति वापस पैदा करना. वर्त्तमान में इस से गुजर रहा हूँ . अपने आप से रेस में दौड़ने जैसा कुछ कुछ .लय वापस पाने की  मंशा है . यात्रा उसके बाद शुरू होगी . आशा है आपका साथ रहेगा .

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