30 सितंबर 2011

चंद ख़यालात

किसी को उस मोड़ से दहशत नहीं होती 
जहाँ अब हाथों से ईबादत नहीं होती  .
हर मुलाकात इक  रस्म से ज्यादह नहीं 
कोई जुम्बिश कोई हरकत नहीं होती .
पहले हर चीज को मचलता था दिल 
अब किसी बात को तबियत नहीं होती .
हर चोट पर दर्द होता था जिसे , उसे 
अब जख्मों से भी दिक्कत नहीं होती .
ये दिल जो यहाँ वहां रहने से डरता है   
वर्ना रहने को क्या ईमारत नहीं होती  .
रोज़ का मजमून इक दिन का माजरा नहीं  
इसे रिश्ता कहते हैं ये सोहबत नहीं होती .  

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