22 फ़रवरी 2012

इतिहास ( चतुर्थ किश्त : क्रमशः )


संस्कृत 
वेद , ऋचा , श्लोक , उपनिषद 
दर्शन , शास्त्रार्थ 
एक प्रथा 
सिंधु सभ्यता 
की लिपी अपठित , अलभ
चित्र सन्मुख 
पशुपति – नंदी मुद्रा 
अंकित विशेष 
देवता शिव सा  
स्वरुप महेश
रूद्र महादेव 
देवाधिदेव 
तीर्थ दुर्गम  
कैलाश – मानसरोवर 
अट्ठारह ज्योतिर्लिंग 
प्राचीन अर्वाचीन देवता 
युग बाद आये  द्वापर, त्रेता  
तब छाया था 
शंकर - भाष्य 
संस्कृत भाषा 
ॐकार 
शब्द ब्रह्म 
नाद ब्रह्म
अउम ध्वनि 
व्याकरण पाणिनि 
स्मृति शाश्वत 
वैदिक विरासत 
देववाणी तुल्य 
अमृत-सम-अमूल्य 
पर इनसे इतर 
मनुष्य बहुल 
किस स्वर संकुल 
सकल-संवाद-रत 
क्या उनके प्रयत 
थे स्वर दीर्घ 
या सिर्फ 
ह्रस्व    
क्या पता 
क्या थे सब शतपत 
या एतरेय ?
तैतरीय निषाद 
एकलव्य 
संशय  की पराकाष्ठा 
है मुझे भी सालता  
क्या करें 
कैसे रहें 
सब प्रश्न स्वयं से पूछते रहे 
नचिकेत अग्नि के पूर्वाग्रह 
हों कितने भी गूढ़
हम मूढ़  
यम के द्वार डटे रहे 
आर्य –अनार्य
विभाजित के विपर्यस्त
भोगा 
राम का वनवास 
संपर्क प्रथम 
वनवासी समाज 
केवट संगम 
स्वप्न समागम 
बाँधा एक पुल,एक सेतु 
फिर भी रहा कटा 
जन-ज्वार नहीं पटा
धोबी का ताना 
बना उर-छाला
सीता - त्याग
अग्नि-परीक्षा 
आज तक खीजता 
खोजता मृगमरीचिका  
कल्पनालोक 
यूटोपिया 
किसने दिया , किसने दिया 
रामराज्य , रामराज्य   
तुलसी के सात सोपान 
भक्तिमय उपादान 
श्रवण-पान श्रवण-गान .
बदली , बदली, भाषा बदली 
चार कोस पर बोली 
ब्रज , अवधी , मीरा , रहीम , कबीर, रसखान 
विद्यापति , पद्मावत , जायसी, नानक, सूरदास 
उठे ढोल , मंजीरे 
भक्ति रस में धीरे -धीरे 
पीछे छूटा बमभोला 
हर हर महादेव 
महामृत्युन्जय
कृष्ण की रासलीला 
बाल गोपाल उनका झूला 
बही बही बयार 
उमडा उमडा जनज्वार 
कुछ-कुछ पटा
लोक-जन , जन-जन 
समरसता , समरसता 
ब्रज की बोली , अवधी की सत्ता 
भाषा का रामराज्य बसता !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके समय के लिए धन्यवाद !!

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...